दिये गये गद्यांश पर आधारित निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
मातृभूमि पर निवास करने वाले मनुष्य राष्ट्र का दूसरा अंग हैं। पृथ्वी हो और मनुष्य न हों तो राष्ट्र की कल्पना असम्भब है। पृथ्वी और जन दोनों के सम्मिलन से ही राष्ट्र का स्वरूप सम्पादित होता है। जन के कारण ही पृथ्वी मातृभूमि की संज्ञा प्राप्त करती है। पृथ्वी माता है और जन सच्चे अर्थों में पृथ्वी का पुत्र है –
(माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः ।) भूमि माता है और मैं मैं उसका पुत्र हूँ
जन के हृदय में इस सूत्र का अनुभव ही रर्राष्ट्रीयता की कुञ्जी है। इसी भावना से राष्ट्र-निर्माण के अंकुर उत्पन्न होते हैं
(i) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
उत्तर – पाठ का नाम – राष्ट्र का स्वरूप
लेखक का नाम – वासुदेव शरण अग्रवाल
(ii) रेखाङ्कित अंश की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर – लेखक कहता है कि राष्ट्रीयता तभी संभव है जब लोगों के हृदय में भूमि माता के रूप में और स्वयं को पुत्र के रूप में समा जाए।
(iii) राष्ट्र की कल्पना कब तक असम्भव है ?
उत्तर – पृथ्वी और मनुष्य के अभाव में राष्ट्रीयता की कल्पना संभव है।
(iv) पृथ्वी किसके कारण मातृभूमि की संज्ञा प्राप्त करती है ?
उत्तर – लोगों अर्थात जन के कारण ही पृथ्वी मातृभूमि की संज्ञा प्राप्त करती है।
(v) पृथ्वी और जन दोनों मिलकर क्या-क्या हैं?
उत्तर – पृथ्वी और जन दोनों मिलकर राष्ट्र का निर्माण करते हैं।
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