दिये गये पढ्यांश पर आधारित निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
मैं कब कहता हूँ जग मेरे दुर्धर गति के अनुकूल बने,
मैं कब कहता हूँ जीवन-मरु नन्दन-कानन का फूल बने ?
काँटा कठोर है तीखा है, उसमें उसकी मर्यादा है,
मैं कब कहता हूँ वह घटकर प्रांतर का ओछा फूल बने ?
(i) उपर्युक्त पद्यांश का संदर्भ लिखिए
उत्तर – पाठ का नाम मैंने आहुति बनकर देखा
कवि का नाम – सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय
(ii) ‘दुर्धर’ और ‘प्रांतर’ शब्दों के अर्थ लिखिए ।
उत्तर – दुर्धर का अर्थ है – दुर्लभ
प्रांतर का अर्थ है – दो प्रदेशों के बीच का स्थान
(iii) ‘जीवन-मरु नन्दन कानन का फूल’ में कौन सा अलङ्कार है ?
उत्तर -‘जीवन-मरु नन्दन कानन का फूल’ में रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है।
(iv) उपर्युक्त पद्यांश का भाव स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर -इन पंक्तियों में आगे जी कहते हैं कि मैं कब कहता हूं कि दुनिया मेरे अनुसार चले और मैने कभी नहीं चाहा कि मेरा मरू जीवन फूलों सा बन जाए, कांटे का कठोर और तेज धार का होने में ही उसकी मर्यादा है।
(v) रेखाङ्कित अंश की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर -कवि कहते हैं कि कांटों का कठोर एवं नुकीला होना ही उसकी मर्यादा है और न ही मैं अपना जीवन फूलों की भांति कोमल अर्थात साधारण व्यतीत करना चाहता हूं।
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